मां का शिशु से
इतना गहरा जुड़ाव होता है कि वह कोई रिस्क नहीं लेती और इस अतिरिक्त
सावधानी के कारण अकसर बच्चों की चाह की अनदेखी हो जाती है। बच्चों के
केअर-कन्सर्न यानी देखरेख और उन पर दबाव में फर्क है, जिसे मांएं अकसर भूल
जाती हैं। बच्चों की देखरेख के नाम पर अत्यधिक नियंत्रण बच्चों की ब्रेन
ग्रोथ को प्रभावित कर देती है।
मां
को यह समझना जरूरी है कि बच्चों की अपनी चाह होती है, जिसे वे बता नहीं
पाते। छोटे बच्चों की चाह की उपेक्षा तो क्षम्य है क्योंकि तब बच्चा पूरी
तरह मां पर निर्भर होता है। लेकिन बच्चों के बड़े होने के साथ ही मुश्किलें
भी बढऩा शुरू हो जाती हैं।
किशोर
उम्र के बच्चों के साथ ज्यादा समय गुजारें, उनकी बात सुनें। उनसे बहस ना
करें, बल्कि बातों ही बातों में उन्हें जरूरी बातें समझाएं, सिखाएं। बच्चों
से अपनी बात मनवाने के लिए यह कभी नहीं कहें कि ऐसा ही करो, क्योंकि आप कह
रहे हैं।
बच्चों को सपार्ट करें, नियंत्रित नहीं
निष्कर्ष
यह है कि मांएं बच्चों की चाह को समझकर उन्हें सपोर्ट दें, नियंत्रित नहीं
करें। ऐसी मांओं को अपने बच्चों से बड़े होने पर ज्यादा प्यार व आदर मिलता
है। किशोर अवस्था जीवन का सबसे नाजुक दौर है, जिसे सावधानी से हैंडल करना
चाहिए।
मसलन,
बच्चों को रोड क्रॉस करते समय यह बताना जरूरी है कि वे सड़क पर चलने वाले
वाहनों को देखें, फिर क्रॉस करें। ऐसे निर्देशों का बच्चों पर नकारात्मक
प्रभाव नहीं पड़ता, पर यदि किशोर बच्चे को खेलने से रोकेंगे या उसके खेलने
के तरीके में दखलअंदाजी करेंगे तो वह पसंद नहीं करेगा। यानी बच्चों को उनकी
उम्र के हिसाब से रोकें-टोकें।
सिखाएं बुनियादी बातें
जो
मां-पिता बच्चों को बुनियादी बातें सीखा देते हैं, वे बच्चेे ना केवल
सुरक्षित फैसले खुद लेने लगते हैं, बल्कि उनके क्रियाकलापों में
बुद्धिमत्ता भी होती है। किशोर उम्र के बच्चों के साथ ज्यादा समय गुजारें,
उनकी बात सुनें। उनसे बहस ना करें, बल्कि बातों ही बातों में उन्हें जरूरी
बातें समझाएं, सिखाएं। बच्चों से अपनी बात मनवाने के लिए यह कभी नहीं कहें
कि ऐसा ही करो, क्योंकि आप कह रहे हैं।
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